कोटाः ढोलक, या ढोलकी भारतीय वाद्य यंत्र है. ढोलक भारत के बहुत पुराने ताल वाद्य यंत्रों में से है. उत्तर भारत में इसका अधिकतर प्रयोग किया जाता है. ये हाथ या छड़ी से बजाए जाने वाले छोटे नगाड़े हैं जो मुख्य रूप से लोक संगीत या भक्ति संगीत को ताल देने के काम आते हैं. प्राचीन काल में ढोल का प्रयोग पूजा प्रार्थना और नृत्य गान में ही नहीं किया जाता था. वरन दुश्मनों पर प्रहार करने, खूंखार जानवरों को भगाने, समय व चेतावनी देने के साधन के रूप में भी उस का प्रयोग किया जाता था.
ढोलक बनाने वाले उस्मान ने बताया कि यह व्यापार पीढ़ी दर पीढ़ी हमारे समुदाय के लोग लगभग 100 वर्षों से अधिक करते हुए आ रहे हैं. घर परिवार के बड़े बच्चे बुजुर्ग सभी ढोलक बनाने का काम करते हैं और कच्चा माल बाहर से मंगाया जाता है. यहां पर पूरी तरह से बनाकर मेलों में गली-गली गांव में शहरों में बेचे जाते हैं. छोटी ढोलक ₹300 और बड़ी ढोलक ₹600 तो वही नट बोल्ट वाली ढोलक 1500 रुपए तक मिल जाती है. अगर यही ढोलक बड़े दुकान शोरूम से ली जाए तो वह 3000 से लेकर ₹5000 तक मिलती है.
संगीत उपकरण पूरी तरह लुप्त
पहले यह व्यापार अच्छा चलता था लेकिन अब धीरे-धीरे काम होता जा रहा है. एक दिन में 8 से 10 ढोलक तैयार कर लेते हैं. बड़े शहरों में आज यह पुराने जमाने के संगीत उपकरण पूरी तरह लुप्त हो गए हैं. वहीं छोटे शहरों से लेकर गांवों में भी अब कम ही देखने को मिलते हैं. इनकी जगह इलेक्ट्रानिक संगीत उपकरणों ने ले ली है.
इस प्रकार बनाई जाती है ढोलक
ढोलक आम, बीजा, शीशम, सागौन या नीम की लकड़ी से बनाई जाती है. लकड़ी को पोला करके दोनों मुखों पर बकरे की खाल डोरियों से कसी रहती है. डोरी में छल्ले रहते हैं, जो ढोलक का स्वर मिलाने में काम आते हैं. चमड़े अथवा सूत की रस्सी के द्वारा इसको खींचकर कसा जाता है. ऐसे तैयार हो जाती है ढोलक.
FIRST PUBLISHED : May 13, 2024, 20:22 IST