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‘मां ये लोग तुम्हारा इस्तेमाल करेंगे, टूटने वाली थी कांग्रेस पार्टी’, प्रियंका गांधी ने याद किया सालों पुराना किस्सा, हो गईं भावुक

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Image Source : PTI
प्रियंका गांधी ने याद किया सालों पुराना किस्सा

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने अमेठी में गुरुवार को चुनावी रैली की। इस दौरान उन्होंने यहां जनता को संबोधित किया। दरअसल अमेठी से कांग्रेस ने केएल शर्मा को अपना उम्मीदवार बनाया है। ऐसे में प्रियंका गांधी उनके लिए वोट की अपील करने पहुंची थी। इस दौरान उन्होंने पार्टी की पूर्व अध्यक्ष और अपनी मां सोनिया गांधी से जुड़े एक पुराने किस्से को याद किया। इस दौरान किस्से को सुनाते वक्त प्रियंका गांधी भावुक हो गईं। दरअसल ये किस्सा पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के 7 साल बाद की है, जब कांग्रेस पार्टी टूटने के कगार पर पहुंच गई थी।

‘कांग्रेस पार्टी टूटने के कगार पर थी’

प्रियंका गांधी ने चुनावी रैली में कहा कि राजीव गांधी के निधन के 7 सालों बाद उनको (सोनिया गांधी) लगा कि कांग्रेस पार्टी संकट में है। उस समय ऐसा लग रहा था कि एक और बार चुनाव आ रहा है। भाजपा उभर सकती है और कांग्रेस पार्टी टूटने वाली थी। उनके (सोनिया गांधी) पास तमाम नेता आते और कहते कि आप राजनीति में आईए। मैं उनकी बेटी थी, उनके बहुत कष्ट देखे थे। मैंने मना किया, मैंने कहा कि राजनीति में मत आओ, ये लोग तुम्हारा इस्तेमाल करेंगे, तुम्हें कुछ हो जाएगा। मैंने कहा, पार्टी छोड़ दो, कोई जरूरत नहीं है, संभल जाएगी पार्टी, कोई संभाल लेगा। लेकिन मां ने बात नहीं सुनी। मेरी मां ने मुझे कहा कि जो मेरे कमरे में तुम्हारे पिता की तस्वीर है। इसको मैं नहीं देख पाऊंगी, अगर आज मुंह मोड़ लिया तो, पार्टी के लिए आगे नहीं बढ़ूंगी तो इनको और अपने आप को क्या जवाब दूंगी।

प्रियंका गांधी ने याद किया पुराना किस्सा, हो गईं भावुक

प्रियंका गांधी ने कहा कि मां आगे आईं और यह स्पष्ट था कि उन्हें अमेठी से चुनाव लड़ना है। अमेठी पिता जी की कर्मभूमी थी। सच बताऊं तो जब ये तय हुआ कि वो अमेठी से चुनाव लड़ेंगी, तो एक शाम उन्होंने मुझसे कहा कि प्रियंका कैसे करूंगी। मैं कभी चुनाव नहीं लड़ी। मैंने कहा कि मां मैं आपको ये चुनाव लड़ के दूंगी। आप मत आओ अमेठी, मैं अमेठी को संभालूंगी। मैंने ये इसलिए कहा क्योंकि जब मेरे पिताजी शहीद हुए, तो मैं नाराज और दुखी थी। मुझे ऐसा लगता था कि मेरा दुख कोई नहीं समझ सकता। लेकिन फिर कुछ हुआ। उनके अंतिम संस्कार के बाद अस्थि विसर्जन के लिए हम इलाहाबाद आए। हमारी ट्रेन अमेठी रायबरेली से होकर गुजरी। मुझे याद है जब मैंने खिड़की से बाहर देखा तो पता चला कि लोग फूट-फूटकर रो रहे हैं। जो दुख मेरे दिल में था। वही दुख अमेठी और रायबरेली की जनता को था। 

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