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भारत में मुसलमानों की बढ़ती आबादी तोड़ रही टैक्सपेयर्स का मनोबल, जनसंख्या नीति लाने का यही सही वक्त: मनु गौड़

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भारत की जनसंख्या

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आर्थिक सलाहकार परिषद की तरफ से एक रिपोर्ट आई है, जिसमें यह खुलासा हुआ है कि दुनिया के अधिकांश मुस्लिम बहुसंख्यक देश में मुसलमानों की आबादी बढ़ी है। वहीं, हिंदू, ईसाई और अन्य धर्म बहुल देशों में बहुसंख्यक आबादी कम हुई है। इसको लेकर टैक्सएब संस्था के अध्यक्ष, सामाजिक कार्यकर्ता एवं जनसंख्या विशेषज्ञ मनु गौड़ ने कहा कि अब देश में बढ़ती आबादी और जनसांख्यिकीय परिवर्तन को रोकने के लिए एक उचित जनसंख्या नीति बनाने की जरूरत है।

प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद ने दुनिया के 167 देशों को लेकर इस रिपोर्ट में यह खुलासा किया है। रिपोर्ट की मानें तो 1950 से 2015 के बीच आए जनसांख्यिकी बदलाव के तहत भारत में हिंदुओं की आबादी 7.82 फीसदी कम हुई है। जबकि, मुसलमानों की आबादी 43.15 फीसद बढ़ी है। इतना ही नहीं इस रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि भारत के पड़ोसी हिंदू बहुल नेपाल में इसी तरह हिंदुओं की जनसंख्या में कमी देखने को मिली है।

कई राज्यों के CM से मिलकर जनसंख्या पर चिंता जाहिर कर चुके हैं मनु गौड़

इसको लेकर टैक्सएब संस्था के अध्यक्ष, सामाजिक कार्यकर्ता एवं जनसंख्या विशेषज्ञ मनु गौड़ से बात की। दरअसल, मनु गौड़ लगातार कई राज्यों के मुख्यमंत्री से मिलकर बढ़ती जनसंख्या पर अपनी चिंता जाहिर कर चुके हैं। मनु गौड़ ने देश में जनसंख्या नियंत्रण की आवाज को बुलंद किया और लाल किले की प्राचीर से इस गंभीर मुद्दे को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उठाया।

167 देशों में धार्मिक आधार पर जनसंख्या में परिवर्तन

अब प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद की रिपोर्ट आने के बाद इसको लेकर चर्चा तेज हो गई है। जिसे लेकर मनु गौड़ ने कहा कि आज जो रिपोर्ट जनसंख्या से संबंधित आई है, उसमें कुछ चीजें देखने लायक है और इस रिपोर्ट को बड़ी गंभीरता से लेने की जरूरत है। इस रिपोर्ट में जो नजर आ रहा है कि 1950 से लेकर 2015 तक के 65 वर्षों में दुनिया के 167 देशों में धार्मिक आधार पर जनसंख्या में जो परिवर्तन हुआ है, वह चिंता का विषय है। इसमें से 123 देश ऐसे हैं, जहां पर बहुसंख्यक आबादी में कमी और अल्पसंख्यक आबादी में बढ़ोत्तरी हुई है। इस रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया कि जिन 123 देशों में यह परिवर्तन आया है, उन देशों में कौन सी अल्पसंख्यक जातियां या धर्म के लोग हैं, जिनकी आबादी बढ़ी है। इसको अगर समझें तो बड़ी आसानी से हम समझ सकते हैं कि यूरोप के देशों में, मिडिल ईस्ट के देशों में बहुसंख्यक आबादी कम हो रही है और अल्पसंख्यक आबादी बढ़ रही है।

उन्होंने आगे कहा कि इन देशों में किस विशेष वर्ग की आबादी बढ़ रही है, ये बताने की आवश्यकता नहीं है। उसमें भारत भी शामिल है, जिसके साथ इस रिपोर्ट में चीन भी नजर आ रहा है, जहां चीनी आबादी में भी कमी आई है। चीन में भी एक विशेष वर्ग की जनसंख्या में वृद्धि हुई है।

भारत और नेपाल में बहुसंख्यकों की आबादी में कमी

इस रिपोर्ट में साफ दिखाया गया है कि भारत और नेपाल दो हिंदू बहुसंख्यक देश हैं, जहां बहुसंख्यकों की आबादी में कमी आई है। इसके अलावा दुनिया के 44 देश ऐसे भी हैं जहां पर बहुसंख्यक आबादी बढ़ी है और अल्पसंख्यक आबादी में कमी आई है। इसे अगर हम समझने की कोशिश करें तो हम भारत के लोग इसे अपने पड़ोसी देश के माध्यम से बेहतर तरीके से समझ सकते हैं। जहां भारत के पड़ोसी पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश में अल्पसंख्यक आबादी कम हुई है और बहुसंख्यक आबादी बढ़ी है। यही कारण रहा है कि भारत को सीएए जैसा कानून लेकर आना पड़ा ताकि उन देशों के प्रताड़ित उन अल्पसंख्यकों को यहां नागरिकता दी जा सके और शरण दिया जा सके।

टैक्सपेयर्स ही नहीं रहेंगे तो उन वेलफेयर स्कीम्स का क्या होगा?

उन्होंने आगे कहा कि भारत को ध्यान में रखकर इसे देखें तो जिस तरह से यहां जनसांख्यिकीय परिवर्तन हो रहा है और साथ ही देश की जनसंख्या में बेतहाशा वृद्धि हो रही है। उसके अनुसार जो देश का करदाता है, खासकर मध्यमवर्गीय और उच्च मध्यम वर्गीय परिवार है। वो आज सोचने पर मजबूर हो गए हैं कि उनके टैक्स के पैसे का उनको क्या लाभ मिल रहा है। उन्हें क्या सुविधाएं मिल रही है। यही कारण है कि देश के मध्यमवर्गीय और उच्च मध्यम वर्गीय परिवार के लोगों ने अपने बच्चों को पढ़ाई के लिए, उन्हें वहां स्थापित करने के लिए बाहर भेजना शुरू कर दिया है। अब धीरे-धीरे वह बच्चे भी वहां जाकर उन देशों की नागरिकता लेते जा रहे हैं। अगर ऐसी ही स्थिति रही तो वेलफेयर स्कीम्स जिन टैक्सपेयर्स के पैसे पर चलती है, वह टैक्सपेयर्स ही नहीं रहेंगे तो उन वेलफेयर स्कीम्स का क्या होगा। इसलिए, भारत को बहुत जरूरत है, इस समय एक उचित जनसंख्या नीति बनाने की। जिससे बढ़ती हुई आबादी को भी रोका जा सके और साथ ही ये जो जनसांख्यिकीय परिवर्तन हो रहा है, इसे भी रोका जा सके।

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