गौरव झा/ मधुबनी:- माता सीता के पिता राजा जनक को तो सभी जानते हैं और उनकी कहानी भी सुनते होंगे. लेकिन क्या राजा जनक के पुरोहित ऋषि याज्ञवल्क्य के बारे में आपको पता है. रामायण काल भले ही चला गया हो, लेकिन सनातन संस्कृति अजर और अमर है. ऋषि याज्ञवल्क्य भारत के वैदिक काल के एक ऋषि और दार्शनिक थे. एक महान योगी, ज्ञानी, धर्मात्मा, श्रीराम कथा के प्रवक्ता और ऋषि परंपरा के महान वेदाचार्य थे. उन्हें अपने काल का सर्वोपरि वैदिक ज्ञाता माना जाता है. ऋषि याज्ञवल्क्य एक महान वैदिक संस्कृति के ज्ञानी के साथ ही राजा जनक के पुरोहित भी थे.
शास्त्रों में सर्वज्ञाता थे ऋषि याज्ञवल्क्य
जनक काल में गर्गवंश में वचक्नु नामक महर्षि की पुत्री ‘वाचकन्वी गार्गी’ हुई, जिनकी ऋषि याज्ञवल्यक से जनक की सभा में ब्रह्मज्ञान पर चर्चा हुई थी. माना जाता है कि राजा जनक प्रतिवर्ष अपने यहां शास्त्रार्थ करवाते थे. एक बार के आयोजन में ऋषि याज्ञवल्क्य को भी निमंत्रण मिला था. राजा जनक ने शास्त्रार्थ विजेता के लिए सोने की मुहरें जड़ित 1000 गायों को दान में देने की घोषणा की थी. राजा जनक की शर्त ये थी कि शास्त्रार्थ के लिए जो भी आए हैं, उनमें से जो भी श्रेष्ठ ज्ञानी विजेता बनेगा, वह इन गायों को ले जा सकता है.
ऐसी स्थिति में ऋषि याज्ञवल्क्य ने आत्मविश्वास से अपने शिष्यों से कहा कि इन गायों को हमारे आश्रम की ओर हांक ले चलो. इतना सुनते ही सब ऋषि याज्ञवल्क्य से शास्त्रार्थ करने लगे. याज्ञवल्क्य ने सबके प्रश्नों का उत्तर बड़ी सरलता से दिया. कुछ लोग यह मानते हैं कि ऋषि याज्ञवल्क्य भगवान ब्रह्मा के अवतार थे. उनकी शिक्षा “शतपथ ब्राह्मण” और “बृहदारण्यक उपनिषद” में दर्ज है. शतपथ ब्राह्मण याज्ञवल्क्य जी की सबसे बड़ी रचना है.
आज के युग यानी की कलयुग की बात करें, तो ऋषि याज्ञवल्क्य का आश्रम आज भी स्थित है, जो बिहार के मधुबनी जिला के बिस्फी स्थित जगबन गांव में है. दरअसल जगबन गांव ऋषि याज्ञवल्क्य का आश्रम है और सनातन संस्कृति एवं ऋषि-मुनियों को मानने वाले श्रद्धालु यहां दूर-दूर से आते हैं. खासकर ऋषि याज्ञवल्क्य जी के जन्मोत्सव पर यहां हजारों श्रद्धालु की भीड़ उमर पड़ती है. इस आश्रम में आने पर ऐसा प्रतीत होता है कि ऋषि मुनियों के काल में फिर से प्रवेश कर गए हो.
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FIRST PUBLISHED : May 12, 2024, 11:13 IST
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