दमोह: आज अधिकतर प्रसव अस्पतालों में होते हैं. लेकिन, सालों पहले जब स्वास्थ्य सुविधाएं इतनी सुदृढ़ नहीं थी, तब प्रसव करने के लिए गांव-गांव में दाई हुआ करती थीं. लोग इन्हें दाई मां के नाम से भी पुकारते थे. दाई की व्यवस्था राजा-महाराजा के समय से चली आ रही है. एक ऐसी ही दाई मां की कहानी जिला मुख्यालय से करीब 25 KM दूर नोहटा ग्राम से सामने आई है. जहां की 77 वर्षीय बुजुर्ग महिला रम्मोबाई बंसल क्षेत्र में बड़ी बहू के नाम से जानी जाती हैं.
परिवार में बड़े होने की वजह से नाम पड़ा
जानकारी के अनुसार, रम्मोबाई के परिवार में वह सबसे बड़ी हैं. इस वजह से नाती-पोते से लेकर घर के सभी लोग उन्हें बड़ी बहू कहने लगे. इसके पीछे की एक मुख्य वजह ये भी है कि बड़ी उम्र के साथ रम्मोबाई अनुभवी भी हैं, इसलिए ग्रामीण इलाकों में रहने वाली अन्य दाइयों की अपेक्षा वह ये कार्य कुशलता से करती हैं. सभी लोग उन पर आंख मूंद कर विश्वास करते हैं.
सरल और सहज स्वभाव की धनी
रम्मोबाई का स्वभाव बेहद सरल और सहज है. साथ ही काम के प्रति समर्पण का भाव उनकी लोकप्रियता का मुख्य कारण है. उन्होंने बताया कि जब अस्पताल में प्रसव नहीं होता था और जब यातायात के साधनों का अभाव था, तब आसपास के गांव में वो पैदल चलकर ही महिलाओं का प्रसव कराने पहुंच जाया करती थी. तप्ती धूप हो या तेज बारिश यहां तक कि कितनी भी कड़ाके की ठंड क्यों न पड़े, वह अपने काम में कभी पीछे नहीं हटी.
बुलावा आने पर चल देती थी
इतना ही नहीं, आज से करीब तीन साल पहले भरी बरसात में घर से हिनौती ठेंगापटी तक करीब 15 किलोमीटर की दूरी तक गाड़ी पर भीगती हुई गर्भवती महिला का प्रसव करवाने के लिए गई थी. यहां तक कि निज ग्राम से करीब 6 किलोमीटर दूर गोपालपुरा गांव की महिलाओं का प्रसव भी वो करवा चुकी हैं, जिसके लिए उन्हें पैदल चलकर गांव तक जाना पड़ता था.
आज भी पीछे नहीं हटती
आगे बताया कि बड़ी उम्र के साथ अब शरीर ने भी काम करना बंद कर दिया है. कभी ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है, तो कभी क़मर दर्द. ऐसे में यदि कोई प्रसव कराने के लिए घर में बुलाने के लिए आ जाए है, तो खुद को आराम दिए बिना ही दवा खाकर महिला का प्रसव कराने निकल जाती हूं. यही मेरा काम है.
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FIRST PUBLISHED : May 12, 2024, 16:33 IST