नई दिल्ली : दिल्ली सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय को सूचित किया कि उसने दिल्ली न्यायालयों के सिविल न्यायाधीशों के आर्थिक क्षेत्राधिकार और दिल्ली के जिला न्यायाधीशों के आर्थिक अपीलीय क्षेत्राधिकार को बढ़ाने के संबंध में दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्ण न्यायालय के दिनांक 09 फरवरी 2022 के संकल्प को आगे बढ़ाते हुए प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. प्रमुख सचिव (कानून) भरत पाराशर ने वकील और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी द्वारा दायर जनहित याचिका में दिल्ली सरकार की प्रतिक्रिया में कहा कि दिल्ली न्यायालयों के सिविल न्यायाधीशों के आर्थिक क्षेत्राधिकार और दिल्ली के जिला न्यायाधीशों के आर्थिक अपीलीय क्षेत्राधिकार को बढ़ाने के प्रस्ताव को दिल्ली के कानून मंत्री और मुख्यमंत्री ने मंजूरी दे दी है और इसे 02 जनवरी 2024 को दिल्ली के उपराज्यपाल द्वारा भी मंजूरी दे दी गई है. पंजाब न्यायालय अधिनियम 1918 की धारा 39 (1) (ए) में संशोधन करके जिला न्यायाधीश के आर्थिक अपीलीय क्षेत्राधिकार को बढ़ाकर 20 लाख रुपये कर दिया गया है.
दिल्ली में अदालतों के सिविल न्यायाधीश केवल 3 लाख रुपये तक के क्षेत्राधिकार के मामलों का फैसला करते हैं, जबकि दिल्ली के पड़ोस में, गुड़गांव, नोएडा, गाजियाबाद और फरीदाबाद में असीमित आर्थिक क्षेत्राधिकार उनके पास हैं.
यह मुद्दा वकील और सामाजिक कार्यकर्ता एडवोकेट अमित साहनी ने उठाया था, जिन्होंने दिल्ली में जिला अदालतों में तैनात सिविल जजों के आर्थिक क्षेत्राधिकार के तर्कसंगत वितरण और वृद्धि के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष एक रिट याचिका दायर की थी, ताकि वर्तमान अधिकतम आर्थिक क्षेत्र से मूल मुकदमों का फैसला किया जा सके. महज 3 लाख रुपये के आर्थिक क्षेत्राधिकार को लेकर 1 जनवरी 2021 को मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह ने यह कहकर निपटान किया था कि 3 लाख रुपये बहुत मामूली रकम है, हम इसे प्रशासनिक पक्ष से देखेंगे.
अधिवक्ता अमित साहनी द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि दिल्ली की विभिन्न अदालतों में तैनात सिविल न्यायाधीशों के आर्थिक क्षेत्राधिकार में समय-समय पर बदलाव किया गया है, जो 2003 में 25 हजार रुपये से शुरू होकर 1 लाख रुपये और अंततः 3 लाख रुपये तक हो गया.
इस पृष्ठभूमि में याचिका में तर्क दिया गया कि 2003 के बाद से दिल्ली के विभिन्न न्यायालयों में तैनात सिविल न्यायाधीशों के आर्थिक क्षेत्राधिकार में कोई बदलाव नहीं हुआ है, जबकि जिला न्यायाधीशों और अतिरिक्त जिला न्यायाधीशों के आर्थिक क्षेत्राधिकार में लगभग 10 गुना यानी 20 लाख रुपये (2003 में) से 2 करोड़ रुपये (2015 में) की वृद्धि हुई है.
याचिका में आगे कहा गया कि “यह ध्यान रखना उचित है कि दिल्ली, गुड़गांव, नोएडा, गाज़ियाबाद और फ़रीदाबाद में जिला अदालतों के पास असीमित आर्थिक क्षेत्राधिकार हैं.. जहां तक आर्थिक क्षेत्राधिकार का सवाल है, दिल्ली में जिला अदालतों को दिल्ली के निकटवर्ती क्षेत्रों में जिला अदालतों के बराबर करने की आवश्यकता है.”
याचिकाकर्ता का यह भी कहना था कि सिविल जजों को सौंपी गई 3 लाख रुपये की आर्थिक कीमत बेहद कम है और चूंकि दिल्ली में कोई भी संपत्ति 3 लाख रुपये की नहीं है, इसलिए इससे गंभीर गतिरोध पैदा हो गया है, क्योंकि सिविल जज केवल 3 लाख रुपये तक की वसूली के लिए छोटे निषेधाज्ञा मुकदमों पर फैसला दे रहे हैं.
साहनी ने इस प्रकार तर्क दिया कि यदि सिविल न्यायाधीशों का आर्थिक क्षेत्राधिकार 20 से 30 लाख रुपये तक बढ़ाया जाता है, तो इससे जिला और अतिरिक्त जिला न्यायाधीशों पर बोझ कम हो जाएगा, क्योंकि ऐसे कुछ मामलों की सुनवाई सिविल न्यायाधीशों द्वारा की जाएगी.
अब आखिरकार दिल्ली सरकार और उप राज्यपाल ने दिल्ली के सिविल जजों के अधिकार क्षेत्र को 3 लाख से बढ़ाकर 20 लाख रुपये और दिल्ली के न्यायाधीशों के आर्थिक अपीलीय क्षेत्राधिकार को 20 लाख रुपये तक बढ़ाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है.
वकील अमित साहनी ने कहा कि ”मुझे उम्मीद है कि आर्थिक क्षेत्राधिकार में वृद्धि से दिल्ली के सिविल न्यायाधीशों के बीच कुछ पेशेवर संतुष्टि बढ़ेगी, साथ ही जिला न्यायाधीशों/अतिरिक्त जिला जजों के समक्ष लंबित मामलों का समाधान होगा. इससे दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष अपीलों का बोझ कम हो जाएगा, क्योंकि 20 लाख रुपये तक की अपीलों का निर्णय अतिरिक्त जिला जज/जिला न्यायाधीश द्वारा किया जाएगा.”
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FIRST PUBLISHED : May 13, 2024, 11:15 IST