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इन्‍फोसिस में चपरासी था ये लड़का, 9000 रुपये थी सैलरी, गांव आकर बनाई खुद की कंपनी, अब करोड़ों का मालिक

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हाइलाइट्स

आज दो-दो स्‍टार्टअप के सीईओ हैं दादासाहेब भगत. उनका वेतन 28 हजार था, तब वह 40 हजार के डिजाइन बेच देते थे. साल 2016 में अपना पहला स्‍टार्टअप नाइंथ मोशन शुरू किया.

नई दिल्‍ली. कहते हैं कामयाबी के लिए किस्‍मत से ज्‍यादा कीमत करम की होती है. कुछ लोग अपने करम से ही किस्‍मत बदल देते हैं. यह कहानी भी ऐसे ही करामाती युवक की है, जिसने अपने करम से किस्‍मत को बदल दिया. किस्‍मत ये थी कि उसका जन्‍म महाराष्‍ट्र के एक छोटे से गांव में एक गरीब किसान परिवार में हुआ. पैसे ज्‍यादा नहीं थे तो पढ़ाई भी आईटीआई पूरी करने तक सीमित हो गई. पैसा कमाने के लिए घर छोड़ा तो पुणे में इन्‍फोसिस कंपनी में चपरासी (ऑफिस ब्‍वॉय) की नौकरी मिल गई और पगार 9000 रुपये महीने. लेकिन, जिद थी अपने करम से खुद की किस्‍मत लिखने की. भगत के पिता दूसरे के खेतों में मजदूरी करते थे और आज आलीशान बंगले में रहते हैं.

दरअसल, हम बात कर रहे हैं दो-दो स्‍टार्टअप के सीईओ दादासाहेब भगत की. इन्‍फोसिस में नौकरी करते हुए भी भगत ने पढ़ाई का जज्‍बा नहीं छोड़ा और पुणे इंस्‍टीट्यूट ऑफ इन्‍फॉर्मेशन एंड टेक्‍नोलॉजी से मल्‍टीमीडिया का डिप्‍लोमा करना शुरू कर दिया. भगत कहते हैं कि उनकी ऑफिस की ड्यूटी रात 8 बजे से सुबह 8 बजे तक होती थी और 10 बजे से क्‍लास शुरू हो जाती. कोर्स खत्‍म होने के बाद उन्‍हें मुंबई के रोटो आर्टिस्‍ट के साथ काम करने का मौका मिला, जहां नार्निया और स्‍टारवार जैसी हॉलीवुड मूवी के लिए काम करने का मौका मिल गया. इसके बाद भगत ने हैदराबाद में एनीमेशन टीवी सीरियल्‍स निन्‍जा हटोरी के लिए भी काम किया.

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शार्क टैंक के जज अमन गुप्‍ता ने भगत के बिजनेस में निवेश किया है.

काम से खुलती गई किस्‍मत
अनुभव आते ही भगत को नए-नए मौके भी मिलने शुरू हो गए. वह हैदराबाद छोड़ मुंबई आ गए और मैजिक एंड कलर इंक के साथ बतौर विजुअल इफेक्‍ट आर्टिस्‍ट काम करना शुरू कर दिया. 2014 तक यहां बतौर सुपरवाइजर काम किया. यहां से निकलकर पुणे के प्राइम फोकस टेक्‍नोलॉजी में ग्राफिक स्‍पेशलिस्‍ट के तौर पर 2016 तक काम किया. काम से पैसे मिले तो भगत ने एक पल्‍सर बाइक खरीदी जिससे उनका एक्‍सीडेंट हो गया. 15 दिन बिस्‍तर पर पड़े रहने के दौरान उन्‍होंने फ्रीलांसर काम खोजना शुरू किया.

बिस्‍तर पर पड़े-पड़े शुरू कर दिया बिजनेस
भगत में टैलेंट तो था ही एक्‍सीडेंट के बाद आराम करते समय उन्‍होंने फायर और स्‍मोक के लिए यूनिक एनीमेशन डिजाइन तैयार किए और उसे थर्ड पार्टी को बेच दिया. उनके डिजाइन ने सैलरी से ज्‍यादा कमाई शुरू कर दी और जब उनका वेतन 28 हजार रुपये था, तब वह 40 हजार के डिजाइन बेच देते थे. यहीं से बिजनेस का आइडिया मिला और नौकरी छोड़ पूरी तरह अपने काम पर जुट गए.

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फिर बनाई अपनी कंपनी
दादासाहेब ने साल 2016 में अपना पहला स्‍टार्टअप नाइंथ मोशन (Ninth Motion) शुरू किया. यह एनिमेशन डिजाइन और डिजिटल आर्ट के लिए काम करती है. काम बढ़ा तो 2018 में पुणे में ही ऑफिस तैयार किया और 10 से 15 लोगों की टीम हायर की. इसके बाद एनिमेशन बनाकर दूसरी कंपनियों को बेचना शुरू किया और 2018-19 में 48 लाख का करोबार तो उसके अगले साल 38 लाख का कारोबार हुआ.

आपदा को भी बनाया अवसर
फिर साल 2020 में कोरोना महामारी ने दस्‍तक दी और ऑफिस बंद करना पड़ा. ऐसा लगा कि भगत का सपना यहीं से टूट जाएगा, लेकिन उन्‍होंने शहर छोड़ दिया और गांव आकर जानवरों बाड़े में ही अपना ऑफिस खोल दिया. अपनी टीम को भी गांव ले आए और महामारी के मुश्किल समय में डूग्राफिक (DooGraphics) के नाम से नया स्‍टार्टअप शुरू कर दिया. यह एआई के जरिये ग्राफिक्‍स डिजाइन का काम करती है, जो कैन्‍वा की तरह है. इसके बाद तो कमाई और टर्नओवर लगातार बढ़ता गया. पिछले साल उनकी कंपनी ने 1 करोड़ का टर्नओवर हासिल कर लिया.

शार्क्‍स भी बन गए कायल
भगत ने जब शार्क टैंक के सीजन 3 में अपनी पिच रखी तो अमन गुप्‍ता भी उनके कायल हो गए. भगत की कंपनी का ग्रोथ देख अमन ने 10 फीसदी इक्विटी हिस्‍सेदारी के लिए 1 करोड़ रुपये का निवेश कर दिया. एक छोटे से गांव से निकलकर ग्‍लोबल कंपनी का यह ऑफर हासिल करना भगत के लिए तो सपना सच होने जैसा था. बीते साल उनकी कंपनी का टर्नओवर 1.8 करोड़ रुपये रहा.

गांव में बनाया बंगला और खरीदी लग्‍जरी कार
भगत का कहना है कि यह सिर्फ फाइनेंशियल सक्‍सेस नहीं थी, बल्कि सपना सच होने जैसा था. आज भगत ने गांव में ही बंगला बनाया है और लग्‍जरी कार लांसर भी खरीदी. इसके अलावा एक ऑडी कार और शेवरले क्रूज भी उनके पास है. भगत का कहना है कि आज उनके माता-पिता को उनकी उपलब्धियों पर नाज है और यही उनकी असली कमाई है.

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