राजधानी दिल्ली में सोमवार को एक 76 साल के ब्रेन डेड व्यक्ति ने 30 साल के शख्स की जान बचा ली. इस करिश्मे को देखकर हर कोई हैरान था और सभी के मुंह से बुजुर्ग व्यक्ति और उसके परिवार के लिए दुआएं निकल रही थीं. यह कारनामा 44 मिनट के अंदर हुआ. फिलहाल 30 वर्षीय शख्स एकदम ठीक है.
बता दें कि सड़क दुर्घटना के बाद 76 साल के बुजुर्ग को मई के पहले हफ्ते में फोर्टिस अस्पताल शालीमार बाग लाया गया था. इस दौरान उनके सिर में गंभीर चोटें लगी हुई थीं और मुंह से भी खून बह रहा था. भर्ती होते समय मरीज बेहोश नहीं थे, लेकिन आधे घंटे के भीतर दिमाग में तेजी से बढ़ते खून के थक्के की वजह से वह बेहोश हो गए. तुरंत ही उनके सिर का सीटी स्कैन कराया गया जिससे पता चला कि उनके दिमाग में बड़ा थक्का यानी क्लॉट (सबड्यूरल हेमाटोमा) बन गया है. क्लॉट और सूजे हुए चोटिल दिमाग के लिए खोपड़ी के दाएं हिस्से के लिए अतिरिक्त जगह बनाने वाली हड्डी को हटाने के लिए तत्काल ही दिमाग की सर्जरी की गई. सर्जरी के बाद उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया, इसके बावजूद वे उबर नहीं सके और ब्रेन डैड घोषित किए गए.
इसके बाद जब परिवार को पता चला तो वे डॉक्टरों के अनुरोध पर मैक्स अस्पताल साकेत में लिवर सिरॉसिस से पीड़ित 30 साल के मरीज को लिवर देने के लिए राजी हो गए. लिवर के अलावा कई अंगों को सुरक्षित निकालने के लिए की गई प्रक्रिया पूरी करने में करीब 2 घंटे 35 मिनट लगे. हालांकि फोर्टिस शालीमार बाग से लेकर मैक्स हॉस्पिटल, साकेत तक लिवर को ट्रांसपोर्ट करने के लिए ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया जिसमें 28.4 किमी की दूरी सिर्फ 44 मिनट में पूरी कर ली गई और लिवर लगा दिया गया.
इस बारे में फोर्टिस हॉस्पिटल शालीमार बाग के डायरेक्टर और एचओडी न्यूरोसर्जरी डॉ. सोनल गुप्ता ने बताया कि 76 साल के बुजुर्ग को इमरजेंसी प्रयासों के बावजूद ब्रेन हैमरेज हो गया क्योंकि दुर्घटना के बाद उनके सिर में गंभीर चोटें लगी थीं और दिमाग में कई क्लॉट बन गए थे. दुर्भाग्य से उन्हें बचाया नहीं जा सका. हालांकि हम सभी उनको सलाम करते हैं और अंगदान के महत्व को समझने और जरूरतमंद व्यक्ति को नया जीवन देने के लिए उनके परिवार की सराहना करते हैं.
वहीं दीपक नारंग, फेसिलिटी डायरेक्टर ने कहा कि अपार दुख के बीच उदारता दिखाने के लिए हम परिवार के ऋणी रहेंगे. सभी आंतरिक और बाहरी मेडिकल टीमों के समर्पण ने इस कार्य को संभव बनाया है. इससे अन्य लोगों को भी प्रोत्साहन मिलना चाहिए कि वे आगे आएं और अंगदान के लिए रजिस्ट्रेन कराएं, ताकि ज्यादा लोगों का जीवन बचाया जा सके.
बता दें कि एनओटीटीओ (नेशनल ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइजेशन) के मुताबिक, जब किसी मरीज़ को ब्रेन डेड घोषित किया जाता है, तो अस्पताल परिवार के लोगों से अंगदान के बारे में चर्चा कर सकता है. एनओटीटीओ के प्रोटोकॉल और दिशा-निर्देशों के मुताबिक, उपचार कर रहा अस्पताल सभी जानकारी उपलब्ध करा सकता है और संभावित अंगदान के लिए जरूरी अनुमति हासिल कर सकता है. इस मामले में मेडिको-लीगल मामले में नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट लिया गया और ग्रीन कॉरिडोर बनाने का अनुरोध किया गया.
यह अनुमान है कि हर वर्ष लगभग 5 लाख भारतीयों को अंग संबंधी समस्या का सामना करना पड़ता है और सिर्फ 2-3 फीसदी लोगों को ही ट्रांसप्लांट कराने का मौका मिल पाता है. एनओटीटीओ के डेटा के मुताबिक, वर्ष 2011 में दिल्ली में 11 मृतकों के परिवारों ने अंगदान किए और इसके अंतर्गत 30 अंग सफलतापूर्वक निकाले गए. हर वर्ष सैकड़ों लोग अंग प्रत्यारोपण यानी ऑर्गन ट्रांसप्लांट की प्रतीक्षा करते हुए ही दम तोड़ देते हैं. गलत धारणाओं और जागरूकता की कमी की वजह से, अंगदाताओं की कमी है और हर बीतते वर्ष के साथ दान किए जाने वाले अंगों की संख्या और ट्रांसप्लांट की प्रतीक्षा कर रहे लोगों की संख्या के बीच अंतर बढ़ता ही जा रहा है. मरने के बाद समय से अंगदान करने से कई लोगों का जीवन बचाया जा सकता है और अगर लोगों को सही जानकारी दी जाए व अंगदान के लाभ बताए जाएं तो काफी लोग सामने आ सकते हैं और अपना अंगदान करने की प्रतिज्ञा ले सकते हैं.
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FIRST PUBLISHED : May 13, 2024, 21:55 IST