AQI के लिए IQAir लोकप्रिय है। कारण है कि CPCB के विपरित, इसने हवा की क्वालिटी मापने के लिए कोई मैक्सिमम लिमिट तय नहीं की है। इसके कारण, इस बात का सटीक अंदाजा मिलता है कि समय के साथ हवा की गुणवत्ता में क्या अंतर आया है?
साल का नवंबर-दिसंबर महीना. देश के कई इलाके प्रदूषण की चपेट में होते हैं। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और इसके आसपास के इलाकों पर इसका कुछ ज्यादा असर होता है। इस बार भी ऐसा ही है। दिल्ली के एयर क्वालिटी इंडेक्स (Delhi AQI) लेवल पर बहस तेज हो गई है।कारण है कि सोशल मीडिया पर इसको लेकर अलग-अलग दावे किए गए हैं।
कुछ प्रमुख लोगों ने लिखा कि दिल्ली का AQI लेवल 1000 के आसपास पहुंच गया है।ध्यान रहे कि AQI लेवल जब 300 के ऊपर जाता है तो इसे इंसानों के लिए खतरनाक माना जाता है। ऐसे में इस आंकड़े का 1000 के आसपास पहुंचना, मानक के खतरनाक स्तर से कई गुना अधिक हो जाता है। सरकारी आंकड़ा इससे बिल्कुल अलग है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के मुताबिक, दिल्ली का AQI लेवल 500 के आसपास है. आंकड़ों में ये अंतर क्यों है?
ये सवाल सोशल मीडिया के दावों भर तक ही सीमित नहीं रहे. दिल्ली के चाणक्यपुरी के AQI लेवल की खूब चर्चा हुई। कारण कि अमेरिकी दूतावास ने इस इलाके का जो AQI बताया, वो CPCB के स्टेशन से आए आंकड़े से बहुत ज्यादा था।अमेरिका आधारित कुछ ऐप के आंकड़े भी ऐसे ही थे।ऐसा ही आंकड़ा IQAir नाम की एक स्विस कंपनी ने भी दिया।इसके अनुसार, 18 नवंबर को इस इलाके का AQI लेवल 1500 के ऊपर पहुंच गया था।
भारत में हवा की क्वालिटी को मापने के लिए तय मानक पर 500 का लिमिट लगाया गया है।आसान भाषा में कहें तो सरकारी आंकड़ों में भारत के किसी भी हिस्से का AQI लेवल 500 से ज्यादा नहीं दिख सकता।अगर AQI लेवल 500 के ऊपर जाता है तो भी ये 500 ही दिखेगा। क्योंकि इस माप की मैक्सिमम लिमिट ही 500 तय की गई है। ऐसे में इस व्यवस्था पर सवाल उठाए जा रहे हैं।
CPCB और IQAir में क्या अंतर है?
AQI के लिए IQAir लोकप्रिय है कारण है कि CPCB के विपरीत, इसने हवा की क्वालिटी मापने के लिए कोई मैक्सिमम लिमिट तय नहीं की है। इसके कारण, इस बात का सटीक अंदाजा मिलता है कि समय के साथ हवा की गुणवत्ता में क्या अंतर आया है?
IQAir सेंसर आधारित मॉनीटरिंग सिस्टम का इस्तेमाल करता है। इससे रियल टाइम में डेटा देना आसान हो जाता है। सेंसर-आधारित सिस्टम AQI में तेजी से आने वाले बदलावों को भी तुरंत दिखाता है। हालांकि, जानकार इस सिस्टम के नुकसान भी बताते हैं। इस व्यवस्था में हस्तक्षेप या गड़बड़ी की भी आशंका रहती है।
इसके उलट CPCB पॉल्यूशन एनालाइजर (प्रदूषण विश्लेषक) सिस्टम का उपयोग करता है। इसमें जो डेटा मिलता है, वो लंबे समय तक एक जैसा रहता है। लेकिन ये अक्सर देरी से परिणाम देता है।
कैसे तय होता है AQI?
CPCB जब AQI लेवल 500 दिखाता है तो इसे प्रदूषण की ‘गंभीर’ स्थिति मानते हैं। ऐसे माहौल में लोगों को घर के अंदर रहने और कम से कम शारीरिक गतिविधि करने की सलाह दी जाती है। ऐसे में जब कोई अंतरराष्ट्रीय वेबसाइट या AQI से संबंधित अन्य प्लेटफॉर्म, इस आंकड़ें को 1000 के आसपास ले जाते हैं तो इससे लोगों में घबराहट होती है।
आंकड़ों में अंतर का एक कारण ये भी है कि अलग-अलग प्लेटफॉर्म, अलग-अलग तकनीक, अलग-अलग डेटा सोर्स और अलग-अलग कम्प्यूटेशनल (गिनती) प्रोसेस का इस्तेमाल करते हैं. CPCB जो डेटा देता है वो एनालाइजर वाले सरकारी स्टेशनों से आता है। जबकि विदेशी वेबसाइट्स सैटेलाइट इमेजरी, प्राइवेट सेंसर और पूर्वानुमान मॉडल से डेटा इकट्ठा करती हैं।
AQI की गणना में PM2.5, PM10, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और ग्राउंड-लेवल ओजोन जैसे प्रदूषकों का स्तर नापा जाता है. विदेशी प्लेटफॉर्म इसमें कुछ अतिरिक्त प्रदूषकों के स्तर को भी शामिल करते हैं। जो आमतौर पर CPCB के आंकड़े में नहीं होता। इस कारण से दूसरे प्लेटफॉर्म के आंकड़े ज्यादा हो जाते हैं।
कैसे दूर हो कंफ्यूजन?
पर्यावरणविद् भावरीन कंधारी बताते हैं कि PM2.5 और PM10 का स्तर अमूमन एक जैसा रहता है. इसलिए अधिक विश्वसनीय जानकारी के लिए AQI लेवल के बजाए PM2.5 के लेवल को देखा जा सकता है. जो विभिन्न देशों में अलग-अलग फॉर्मूले के कारण उतार-चढ़ाव कर सकते हैं। PM2.5 में मामूली वृद्धि भी स्वास्थ्य को बड़े स्तर पर प्रभावित कर सकती है।
जानकार बताते हैं कि एक ऐसे सिस्टम की मांग होनी चाहिए जो AQI स्कोर के साथ-साथ सीधे PM2.5 रीडिंग देता हो।
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